
किन-किन रास्तों से गुजरता है जीवन...
कुछ रास्ते हरे-भरे पेड़ों से भरे,
कुछ वीरान खड़े ठूंठ से,
पर क्यों हरे पेड़ों के नीचे होती है चुभन गर्मी की...
और कभी-कभी देते हैं ठूंठ भी शीतल छाया...
ख्वाहिशों के पीछे भागते-भागते बीच में वक्त निकाल ही लिया और ज़ाहिर करनी शुरू की अपनी ख्वाहिशें...
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4 टिप्पणियां:
पुनम जी जिन्दगी इसी का नाम हे,एक अनबुझ पहेली
सब वक्त का फेर है। पर आपकी लेखनी में वजन है। इसे बढाइये। लिखिए और खूब लिखिए।
hoon....
poonam jee,
saadar abhivaadan. bahut kam shabdon mein behad gehree baat keh dee aapne.
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