शुक्रवार, 14 मार्च 2008

तलाश...


बहुत टकराए हम ऊंची दीवारों से, खूब खोजा रेत में पानी
पर दीवारें दृढ़ थी और रेत थी सूखी
सोचा था कि दीवारें टूटेंगी और मिलेगा हमें पानी
अचानक छा गया अंधेरा....आंखें खोली तो देखा,
दीवारें हो गई थी और भी ऊंची, समुद्र भी बन गया था रेत,
अब तो कोशिश करते हैं दीवार में बनाने की सुराख
और चाहते हैं...रेत को निचोड़कर पानी
(वैसे तो ये लाइनें कई साल पहले लिखी थी लेकिन आज भी यह उतनी ही सही महसूस होती हैं)

6 टिप्‍पणियां:

अबरार अहमद ने कहा…

बहुत अच्छा, आपकी कविता हिम्मत देने वाली है।

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है

बेनामी ने कहा…

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the DVD e CD, I hope you enjoy. The address is http://dvd-e-cd.blogspot.com. A hug.

Batangad ने कहा…

अरे वाह तुमने भी ब्लॉग बना लिया है। अच्छी लाइनें लिखी हैं।

Ashish Pandey ने कहा…

sahi raste par chal rahi ho boss
;-)

Manjit Thakur ने कहा…

साधुवाद