बुधवार, 12 मार्च 2008

ठूंठ की छाया


किन-किन रास्तों से गुजरता है जीवन...
कुछ रास्ते हरे-भरे पेड़ों से भरे,
कुछ वीरान खड़े ठूंठ से,
पर क्यों हरे पेड़ों के नीचे होती है चुभन गर्मी की...
और कभी-कभी देते हैं ठूंठ भी शीतल छाया...

4 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

पुनम जी जिन्दगी इसी का नाम हे,एक अनबुझ पहेली

अबरार अहमद ने कहा…

सब वक्त का फेर है। पर आपकी लेखनी में वजन है। इसे बढाइये। लिखिए और खूब लिखिए।

Ek ziddi dhun ने कहा…

hoon....

अजय कुमार झा ने कहा…

poonam jee,
saadar abhivaadan. bahut kam shabdon mein behad gehree baat keh dee aapne.