शनिवार, 22 सितंबर 2007

बेटियों का दिन

क्या आपको पता है कि कल डॉटर्स डे है यानी बेटियों का दिन। वैसे मुझे दो दिन पहले ही किसी अख़बार में आर्चिज का विज्ञापन पढ़कर ये जानकारी हुई। चलो...इसी बहाने कुछ मॉडर्न लोग, मॉडर्न इसलिए क्योंकि गांव-घरों में न आर्चिज को जानते हैं न ही इस तरह के किसी दिन को, बेटी होने पर फक्र महसूस कर सकेंगे। लेकिन क्या इतने भर से बेटियों की दशा सुधरेगी...

खबर-बेखबर

क्या आपको जौनपुर की मोनिका की याद है...अरे वही जो चार-पांच दिन पहले लगभग सभी टीवी चैनल में अपनी बारात के साथ दिखाई दे रही थी...उसकी बारात मतलब... वो बारात लेकर अपने ससुराल जा रही थी। दरअसल उसकी शादी नौ साल पहले हुई थी पर पति ने अब तक गौना नहीं करवाया। इस बीच उसको पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। बस फिर क्या था वो तमाम महिलाओं को लेकर अपने ससुराल पहुंच गई। ससुराल में ताला लगा था और ससुराली गायब थे इसलिए वो ताला तोड़कर अंदर घुस गई। सभी न्यूज चैनल ने खबर को दिखाया। क्योंकि खबर मसालेदार थी। विजुवल भी अच्छे थे कि तमाम महिलाएं नाचते-गाते एक महिला की बारात में शरीक हो रहे हैं।
उसी के दूसरे दिन कुछ अख़बारों में एक कोने में बहुत ही छोटी सी खबर थी कि मोनिका के ससुराल वालों ने उसका सामान बाहर फेंककर उसे खदेड़ दिया है। लेकिन किसी भी चैनल में ये खबर नहीं दिखाई दी। क्या लगता है आपको? क्यों नहीं बनी ये खबर...कहीं ऐसा तो नहीं कि आए दिन किसी महिला को ससुराल से खदेड़ने या परेशान करने की खबर आती ही रहती है तो इसमें एयर टाइम बर्बाद करने की जरुरत किसी को नहीं लगी...

शनिवार, 8 सितंबर 2007

किसे क्या चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमें फुल टाइम छात्र चाहिए न कि फुल टाइम लीडर और पार्ट टाइम छात्र ...और लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने पर जोर दिया। हमें और देश को भी सांसद और विधायक चाहिए...फुलटाइम सांसद और विधायक...न कि फुल टाइम गुंडे-ठेकेदार और पार्ट टाइम राजनेता....इसको सुनिश्चित करने के लिए भी क्या कोई कदम उठाऐगा?

गुरुवार, 6 सितंबर 2007

किसकी कितनी अहमियत?

चिंकारा मारने पर सलमान ख़ान को 6 साल की सज़ा और सड़क पर बेगुनाहों को कुचलने के लिए एलिस्टर परेरा को तीन साल की सज़ा...किसकी जान की कीमत ज्यादा है?

मंगलवार, 28 अगस्त 2007

वो क्या था?

नेहा मिश्रा कहती हैं...
आज दिन भर टीवी चैनलों पर चल रही भागलपुर की घटना कुछ सोचने को मजबूर कर रही थी । क्या मानव अधिकार की बातें करने वाले इस युग में आज भी एक इंसान दूसरे पर इतने ज़ुल्म ढा सकता है । वैसे भी जहां तक मेरा खयाल है चोरी करने की इतनी निर्मम सज़ा तो हमारे क़ानून ने भी तय नहीं की तो फिर भला एक पुलिस वाले को एक इंसान को जानवरों की तरह घसीटने का हक किसने दे दिया ? वो दृश्य तो अमरीश पुरी की किसी फिल्म में दिखाई गई क्रूरता को भी मात दे रहा था । मेरी ये चर्चा तब तक अधूरी होगी जब तक मैं वहां मूक दर्शक बने भागलपुर के उन लोगों की बात न करूं जिनके सामने उस चोर को अपनी थोड़ी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी कि आज वो अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से लड़ रहा है। पता नहीं ऐसी कितनी घटनाओं के बाद हमारी नींद खुलेगी और हम इंसान को दुबारा इंसान समझेंगे ।

बुधवार, 22 अगस्त 2007

हत्यारा कौन?

शिबू सोरेन बाइज्जत बरी...बाकी के चार आरोपी भी बरी...तो फिर किसने मारा शशिनाथ झा को...किसने की उसकी हत्या...किसी ने तो की होगी...अगर शिबू और साथी नहीं तो कौन...कौन है हत्यारा...निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए हाईकोर्ट ने आरोपियों को बाइज्जत बरी तो कर दिया लेकिन कौन बताएगा कि किसने मारा शशिनाथ झा को...

गुरुवार, 9 अगस्त 2007

भागो संतराम आया...

संतराम, हिसार का रहने वाला एक शख्स...उम्र करीब चालीस साल। पिछले करीब सात-आठ महीनों से मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। करीब आठ महीने पहले आईबीएन-7 एक खबर चलाता है...हां सिर्फ खबर नहीं बल्कि एक्सक्लूसिव खबर। हिसार के संतराम के पीछे एक नाग पड़ा है। उस नाग की डर से वो पिंजड़े में कैद हो कर रहता है....नाग करीब नौ साल से उसके पीछे पड़ा है......... फिर नाग कैसे पीछे पड़ा और क्यों पीछे पड़ा....इस सब पर चर्चा की गई। संतराम भी हिट प्रोग्राम भी हिट। इसके करीब एक महीने बाद यही संतराम आजतक पर नज़र आया......वही संतराम...वही नाग...और वही पिंजड़ा....वही वजह...वही चर्चा..। पर इस बार भी ये सिर्फ खबर नहीं थी... बल्कि एक्सक्लूसिव खबर थी। एक महीने बाद भी ना संतराम बदला था ना उसकी परेशानी...हां चैनल जरूर बदल गया। आज फिर अचानक इंडियाटीवी पर वही संतराम नजर आने लगा। एक पल के लिए लगा कि शायद अब संतराम को नाग से छुटकारा मिल गया होगा...पर नहीं...संतराम भी वही आठ महीने पुराना वाला था...और खबर भी वही...और नाग अब तक उसके पीछे पड़ा था...न नाग बदला..न संतराम बदला और न ही पिंजड़ा बदला...पर खबर इस बार भी एक्सक्लूसिव ही थी।

मंगलवार, 7 अगस्त 2007

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी...

ख्वाहिशों के पीछे भागते-भागते बीच में वक्त निकाल ही लिया और ज़ाहिर करनी शुरू की अपनी ख्वाहिशें...