शनिवार, 3 मई 2008

यही है जीवन...


जन्म लेते ही मां की गोद है जीवन,

बचपन में खेलकूद है जीवन,

कुछ बड़े होने पर, दोस्तों का प्यार है जीवन,

एजुकेशन के बाद सोचें तो रोजगार है जीवन,

उस जीवन की खोज में भटकते हैं कदम

कभी चकाचौंध इमारतें, कभी टूटी झोपड़ी निहारते हुए

दिन-भर घूम-घूम कर कुछ न लगे हाथ तो

घर में झुझलाहट है जीवन

सुबह से शाम तक की खोज...

कुछ न मिलने पर

देर रात थके हारे आकर...मुंह ढाप लेता है जीवन

बिन सिसकियों के आंसू की बौछार है जीवन,

कुछ मिल जाए तो आराम है जीवन...

ना मिल पाए तो लंबा बुखार है जीवन

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही है!

अबरार अहमद ने कहा…

बहुत सुंदर। बधाई

sushant jha ने कहा…

बिल्कुल ....पूनम दीदी..आप इतनी अच्छी कविता कैसे लिख लेती है...

kmuskan ने कहा…

aachi kavita likhi hai

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह, अच्छी रचना है...

Neetu Singh ने कहा…

सही कहा जीवन का सच तॊ यही है। अच्छी कविताएं लिख लेती हॊ। इसे जारी रखना।

अनुराग अन्वेषी ने कहा…

आदमी तृप्त जानवर हो जाये तो जी - वन है जीवन। और आदमी की अतृप्ति ही उसके जीवन में ईंधन का काम करती है।

Unknown ने कहा…

Bahur Khoob...

Unknown ने कहा…

Bahut Khoob..