रविवार, 18 मई 2008

मौत पर कमाई

नोएडा में आरुषि की मौत की खबर सभी चैनलों पर चल रही थी। मैं ज्यादा जानकारी की चाहत में लगातार चैनल चेंज कर रही थी। लेकिन इंडिया टीवी पर पहुंच कर रुक गई। दरअसल उसमें जो चल रहा था वह वाकई में निन्दा करने लायक लगा। एंकर बोल रही थी कि आप हमें इस.....नंबर पर फोन कर बताएं कि आपको क्या लगता है...कौन है आरुषि का कातिल? और कुछ (उत्साही) लोग फोन कर हत्यारे पर अपने-अपने तुक्के भिड़ा रहे थे। कोई कह रहा था कोई अपरिचित हत्यारा होगा तो कोई आरुषि के मां-बाप पर ही उंगली खड़ी कर रहा था।
हत्यारा चाहे जो भी हो, पुलिस उसका पता लगाने की कोशिश कर ही रही है। हो सकता है कि जल्द ही गुत्थी सुलझ भी जाए। लेकिन एक बच्ची की दर्दनाक मौत पर हत्यारे का अंदाजा लगाने के नाम पर (ज्यादा से ज्यादा फोन रिसीव कर) चैनल की कमाई करना मुझे बेहद ही अफसोसजनक लगा। उन्होंने यह तक नहीं सोचा कि उस परिवार पर क्या गुजर रही होगी....शर्म आनी चाहिए उन्हें.....

11 टिप्‍पणियां:

शायदा ने कहा…

शर्म उनको मगर नहीं आएगी,,

अभिनव आदित्य ने कहा…

पूनम जी,
आपका ये पोस्ट अति उत्साह या फिर गैर जानकारी में लिखा गया लगता है... क्योंकि किसी प्रोग्राम के दौरान शामिल होने वाले 7-8 फ़ोन से 200 करोड़ के चैनल को कोई लाभ नहीं होता. न कोई फ़र्क पड़ता है...!!!

nadeem ने कहा…

ye khabariya nahi manoranjan channel nahi nahi dharmik channels hain jo kabhi kabhi telephone companiyan ban jaate hain jo kewal kamayi karna chahte hai..unhe kisi se kya?

poonam pandey ने कहा…

अभिनव जी, चलिए अगर आपकी बात मान लेते हैं कि २०० करोड़ के चैनल को कुछ फोन कॉल से फायदा नहीं होने वाला...( वैसे कॉल के जरिए ना सही तो टीआरपी के जरिए कमाई की बात को जरूर प्रोड्यूशर के दिमाग में होगी, जब यह प्लान किया होगा )लेकिन मैं यह नहीं समझ पाई कि आप उनकी तरफदारी कर रहे हैं या आपको भी इसमें कुछ गलत नजर आया?.... क्या वाकई आपको वह सब सही लगा?

ghughutibasuti ने कहा…

आज सारा संसार, समाज केवल एक दुकान है। मनुष्य का दर्द भी केवल बेचने की वस्तु है। कौन उसको कितने अच्छे तरीके से पैक करके कितने लोगों को बेच सकता है बस यही महत्वपूर्ण है। यह बच्ची हमारी, आपकी किसी की भी हो सकती थी यह बात हम भूल जाते हैं।
घुघूती बासूती

अभिनव आदित्य ने कहा…

पूनम जी,
अब आप अपनी ही पोस्ट को फुस्स कर रही हैं. आपने तो फ़ोन के ज़रिए कमाई की बात लिखी थी. मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि किसी खबर पर दर्शकों की राय लेने में हर्ज ही क्या है ?

अभिनव आदित्य ने कहा…

i think u belong to media community. And if it so, you must be knowing the TV journalism. By the way where r u working?

Unknown ने कहा…

बलात्कार के वक्त भी कहीं गलती से कोई मीडिया वाला पहुँच जाये तो वह लड़की को बचायेगा नहीं, बल्कि पहले लड़की से पूछेगा "आपको कैसा लग रहा है?" फ़िर दर्शकों से पूछेगा कि "जल्दी से अपना मोबाइल उठायें और हमें SMS करके बतायें कि बलात्कारी को कहाँ-कहाँ हाथ डालना चाहिये…" ये हो गया है हमारा आजकल का मीडिया… पैसे, ग्लैमर और टीआरपी के भूखे इन "ब्लैकमेलरों" की जब कभी पुलिस या नेताओं के गुंडे ठुकाई करते हैं तब बड़ा मजा आता है…

poonam pandey ने कहा…

अभिनव जी, पहले तो मैं आपसे यह कहना चाहूंगी कि कम से कम आप ब्लॉग को टीआरपी नुमा दौड़ से बाहर रखिए। आपका यह बयान- (अब आप अपनी ही पोस्ट को फुस्स कर रही हैं. ), यही दर्शाता है कि आप भी पोस्ट हिट होने और फुस्स होने की दौड़ में शामिल हो रहे हैं।
दूसरी बात....दर्शकों की राय लेने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन राय किस मुद्दे पर ली जाए यह जरूर सोचना चाहिए। किसी का मर्डर और हत्यारे का अनुमान लगाना कोई राय लेने की बात नहीं है। यह सिर्फ टीआरपी बटोरने का माध्यम है। सनसनी पैदा करने की कोशिश है। और मैं ऐसी कोशिश की निंदा करती हूं।
जहां तक आपने लिखा है कि मुझे टीवी जर्नलिज्म को समझना चाहिए....तो आपको बता दूं कि चार साल मैंने टीवी की दुनिया में ही बिताए हैं। इसलिए अच्छी तरह जानती हूं कि किस खबर पर दर्शकों की राय लेकर टीआरपी बटोरी जा सकती है। और कैसे न्यूज रूम में बैठकर सनसनी फैलाई जाती है।

Unknown ने कहा…

यह बात तो बहस का रूप लेती जा रही है। खैर इसमें बहस की गुंजाइश है नहीं। सच है कि टीआरपी या लोकप्रियता हासिल करने की दौड़ में खबरिया चैनल तमाम ऒछे हथकंडे अपना रहे हैं। इनके प्रोग्राम्स की बात करने लगूं तो बहुत लंबी लिस्ट बन जाएगी। फिलहाल इतना तय है कि आरुषि की हत्या पर जिस तरह फोन कॉल्स मंगवाकर हत्यारे का अंदाजा लगाने के लिए कहा जा रहा है वह इंडिया टीवी के लिए शर्म की बात है। नेताओं पर बात बेबात हर मसले पर राजनैतिक रोटियां सेंकने के जुमले उछालने वाले ये टीवी खुद हर खबर को अनावश्यक तूल देने से बाज नहीं आते। फिर इनमें और उन नेताओं में फर्क ही क्या है?

सागर नाहर ने कहा…

अभीनवजी टिप्पणी देते समय यह कैसे भूल गये कि 7-8 फोन से छोड़ एक भी फोल कॉल्स से 200 करोड़ के चैनल को एक धेले का सीधा फायदा नहीं होता, बल्कि फोन करने वाले की जेब से ही कॉल के पैसे खर्च होते हैं।
चैनल को तो सिर्फ टीआरपी का ही फायदा होता है|