शनिवार, 22 सितंबर 2007

बेटियों का दिन

क्या आपको पता है कि कल डॉटर्स डे है यानी बेटियों का दिन। वैसे मुझे दो दिन पहले ही किसी अख़बार में आर्चिज का विज्ञापन पढ़कर ये जानकारी हुई। चलो...इसी बहाने कुछ मॉडर्न लोग, मॉडर्न इसलिए क्योंकि गांव-घरों में न आर्चिज को जानते हैं न ही इस तरह के किसी दिन को, बेटी होने पर फक्र महसूस कर सकेंगे। लेकिन क्या इतने भर से बेटियों की दशा सुधरेगी...

5 टिप्‍पणियां:

Rachna Singh ने कहा…

it depends if woman and daughteres want to improve their condition they need to lear to speak and not accept all that is wrong . by celebrating such days we will achiev nothing is my opinion

36solutions ने कहा…

भारत तो अर्वाचीन काल से पुत्रियों का सम्‍मान करता रहा है, यहां प्रत्‍येक दिवस पुत्रियों का दिन है, देवियों का दिन है वर्ष में नवराती दो बार आता है । यहां यत्र नारी पूज्‍यते की विचारधारा को माना जाता है ।
वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे डे का सेलीब्रेशन लाजमी हो जाता है क्‍योंकि उपर जो बाते मैंने लिखी है वे आज के युवा प्रासंगिक नहीं मानते इसलिए मनाईये डाटर्स डे ।

आपको इसकी बधाई ।

DUSHYANT ने कहा…

.apka khyaal jaheen aur khoobsoorat hai, kash aisaa ho... ameen

DUSHYANT ने कहा…

wah, jaheen aur khoobsoorat khyaal

Unknown ने कहा…

bazar ke archies dand-fand se betiyon kee ahamiyat kya badhegi? ye to lambi ladai hai, jinhe ladni hai, lad rahe hain