मंगलवार, 28 अगस्त 2007

वो क्या था?

नेहा मिश्रा कहती हैं...
आज दिन भर टीवी चैनलों पर चल रही भागलपुर की घटना कुछ सोचने को मजबूर कर रही थी । क्या मानव अधिकार की बातें करने वाले इस युग में आज भी एक इंसान दूसरे पर इतने ज़ुल्म ढा सकता है । वैसे भी जहां तक मेरा खयाल है चोरी करने की इतनी निर्मम सज़ा तो हमारे क़ानून ने भी तय नहीं की तो फिर भला एक पुलिस वाले को एक इंसान को जानवरों की तरह घसीटने का हक किसने दे दिया ? वो दृश्य तो अमरीश पुरी की किसी फिल्म में दिखाई गई क्रूरता को भी मात दे रहा था । मेरी ये चर्चा तब तक अधूरी होगी जब तक मैं वहां मूक दर्शक बने भागलपुर के उन लोगों की बात न करूं जिनके सामने उस चोर को अपनी थोड़ी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी कि आज वो अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से लड़ रहा है। पता नहीं ऐसी कितनी घटनाओं के बाद हमारी नींद खुलेगी और हम इंसान को दुबारा इंसान समझेंगे ।

कोई टिप्पणी नहीं: