शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

कितने दोगले हैं हम...

कुछ दिन पहले एक दोस्त के घर पर थी। बातों-बातों में उसने कहा कि आज मेड (बाई) नहीं आई है। फिर तो मेड के बिना बताए ना आने, उनके नखरे और नई मेड ढूंढने में होने वाली परेशानी पर पूरी चर्चा ही छिड़ गई। उसने कहा कि यार आजकल मेड मिलना ही सबसे मुश्किल है। और नौकरी ढूंढने के लिए लोग परेशान रहते हैं लेकिन मेड ढूंढना अपने आप में चुनौती भरा काम हो गया है। चर्चा चल ही रही थी एक-दो और दोस्त उसमें शामिल हो गए। यह बात आई कि अब ज्यादातर लोग पढे़-लिखे हो गए हैं इसलिए कोई यह काम करना नहीं चाहता। और यही परेशानी की वजह है। उस वक्त हमें मेड के एक दिन छुट्टी मारने से होने वाली परेशानी के अलावा दूसरी बात नहीं सूझ रही है। कुछ देर बाद मैंने अपनी दोस्त से कहा कि यार हम एक तरफ सबको पढ़ाई के अधिकार, बेहतर जिन्दगी के अधिकार की बात करते हैं। दूसरी तरफ हमें ही इससे परेशानी हो रही है। आखिर कोई क्यों किसी और का काम करे, उसके गंदे कपड़े धोए और उसके जूठे बर्तन साफ करे। हम सब अपना काम खुद क्यों नहीं करते। तुम और मैं खुद भी बातें करने के लिए तो कह देते हैं कि सबको बेहतर जिन्दगी मिलनी चाहिए, सबको पढ़ लिख कर बेहतर नौकरी करने का अधिकार है, लेकिन एक दिन मेड के ना आने से हम परेशान हो जाते हैं। इतना कहने के बाद मैं चुप हो गई। इसके बाद तो जैसे चुप्पी छा गई। किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। मेरे पास भी आगे कहने को कुछ नहीं था। हम सब शायद अपने दोगलेपन ही चुप थे।

7 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बिलकुल सही कहा आप के दोस्त ने, हम भी तो यहा सभी काम खुद करते हे, अपना पखाना भी खुदी साफ़ करते हे,क्या पढ लिख कर हम गन्दा रहना सीखते हे ? पढ लिख कर क्या दुसरो का सहारा लेना जरुरी हे,
धन्यवाद

Anil Pusadkar ने कहा…

sahi kaha aapne.swatantrata divas ki badhai

Udan Tashtari ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही है। लिखना जल्दी-जल्दी होना चाहिये।

Anil Kumar ने कहा…

हर आदमी अपना काम ख़ुद ही कर ले - इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? क्या इसी का दूसरा नाम स्वाधीनता नहीं है? भारत में अपना मैला ख़ुद साफ़ करना बुरी बात मानी जाती है, चाहे कितने ही गाँधी पैदा होकर मार दिए जायें - अपना कूड़ा ख़ुद उठाने की पहल बहुत ही कम लोग कर पाते हैं. कूडेदान के बाहर कूड़ा फेंकने में हम पहले से ही स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. फिर अपने द्वारा ही फेंके गए कूड़े के पास से गुज़रना पड़े तो नाक सिकोड़कर थूकते भी हम ही हैं. ये मेड-वेड सब हिंदुस्तान के ही चोंचले हैं, कभी यूरोप या अमेरिका जाकर देखें कितने लोग रखते हैं घर में नौकर.

L.Goswami ने कहा…

main to khud hi kaam karna pasand karti hun.sundar lekh ka dhnyawad

Shahnawaz Malik ने कहा…

achha laga apke kyalaat jaankar