रविवार, 24 अगस्त 2008

क्यों होते हैं दूर अपनी जमीन से

कल ऑफिस कैब से घर को जा रही थी। ड्राइवर ने नेपाली गाने लगाए थे। बात इसी से शुरू हुई। मैंने पूछा कि आप नेपाल में कहां से हैं। फिर बातों का सिलसिला चल पड़ा। मैंने यह जानने के लिए कि नेपाल में माओवादियों के हथियार छोड़कर सत्ता पर आने को वहां के लोग कैसा समझते हैं, उनसे पूछा- और नेपाल में क्या चल रहा है? अब तो माओवादी सत्ता पर आ गए। कुछ कर रहे हैं या नहीं। ड्राइवर- अरे मैडम उनके आने से तो जिन्दगी ही बदल गयी। बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। अब तो सात साल की लड़की भी बड़े-बड़े आदमी से मुकाबला कर रही है। मैंने कहा- मतलब। ड्राइवर- मैडम इन माओवादियों ने अब छोटे-छोटे बच्चों को कराटे सिखा दिए हैं। पता है सबको स्कूल जाने के लिए कहते हैं। स्कूल जाने का पूरा खर्च तो देते हैं साथ ही दो सौ रुपया महीना भी देते हैं। बच्चों को और बड़ों को सभी को मुफ्त में कराटे सिखा रहे हैं। तभी तो जब एक सात साल की लड़की को दुकान के पास एक लड़का छेड़ रहा था तो उसने उसकी ऐसी पिटाई की कि उसकी हड्डी-पसली टूट गई। मैंने आश्चर्य जताते हुए कहा- अच्छा। ड्राइवर- हां मैडम। अब तो वहां बहुत अच्छा हो गया है। पहले तो बाहर निकलने में भी डर लगता था अब तो डर नहीं लगता। मैंने कहा कि क्यों पहले माओवादियों का डर लगता था क्या? और अब सत्ता में आने के बाद तो उन्होंने हथियार छोड़ दिये हैं। "अरे नहीं मैडम माओवादियों का नहीं, गुंडों का। अब तो अच्छा इंतजाम हो गया है।" मैंने कंफर्म करने के लिए फिर पूछा कि अच्छा फिर तो यह जो भी अच्छा हो रहा है सब दो-तीन महीने से ही हो रहा होगा ना। "हां मैडम। बहुत अच्छा काम कर रहे हैं माओवादी।" अच्छा तो फिर जब राजा होता था तब क्या अच्छा नहीं था। "मैडम तब तो जो राजा ने कहा लोग वह मान लेते थे, चाहे सही हो या गलत। पर माओवादियों ने तो सबको जगाया। जनता को बताया कि क्या गलत हो रहा है। बहुत काम किया है उन्होंने। यही नहीं वहां ना पहले एक आदमी चार-पांच शादी कर लेता था अब तो उन्होंने इस पर भी रोक लगा दी। पहले बच्ची की शादी कर देते थे। पर अब नहीं। अब तो वहां भी सब यहीं जैसा हो गया है।" अरे वाह, चलो अब तो विकास भी होगा। "हां मैडम, अब तो वहीं जाने का दिल करता है। पहले तो वहां स्थिति ठीक नहीं थी तो यहां चले आए थे। पर अब यहां मन नहीं लगता। वहीं जाने का मन करता है।"
तब तक मेरा घर भी आ गया। गाड़ी से उतरते वक्त मैं यही सोच रही थी कि बेहतर की तलाश में ही लोग अपना मुल्क छोड़कर दूसरे देश में चले जाते हैं। काश सभी लोगों को अपनी ही जमीन में अपने ख्वाब पूरा करने का मौका मिल जाए तो फिर उन्हें अपने मुल्क से दूर होने का दर्द नहीं सालेगा।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

कितने दोगले हैं हम...

कुछ दिन पहले एक दोस्त के घर पर थी। बातों-बातों में उसने कहा कि आज मेड (बाई) नहीं आई है। फिर तो मेड के बिना बताए ना आने, उनके नखरे और नई मेड ढूंढने में होने वाली परेशानी पर पूरी चर्चा ही छिड़ गई। उसने कहा कि यार आजकल मेड मिलना ही सबसे मुश्किल है। और नौकरी ढूंढने के लिए लोग परेशान रहते हैं लेकिन मेड ढूंढना अपने आप में चुनौती भरा काम हो गया है। चर्चा चल ही रही थी एक-दो और दोस्त उसमें शामिल हो गए। यह बात आई कि अब ज्यादातर लोग पढे़-लिखे हो गए हैं इसलिए कोई यह काम करना नहीं चाहता। और यही परेशानी की वजह है। उस वक्त हमें मेड के एक दिन छुट्टी मारने से होने वाली परेशानी के अलावा दूसरी बात नहीं सूझ रही है। कुछ देर बाद मैंने अपनी दोस्त से कहा कि यार हम एक तरफ सबको पढ़ाई के अधिकार, बेहतर जिन्दगी के अधिकार की बात करते हैं। दूसरी तरफ हमें ही इससे परेशानी हो रही है। आखिर कोई क्यों किसी और का काम करे, उसके गंदे कपड़े धोए और उसके जूठे बर्तन साफ करे। हम सब अपना काम खुद क्यों नहीं करते। तुम और मैं खुद भी बातें करने के लिए तो कह देते हैं कि सबको बेहतर जिन्दगी मिलनी चाहिए, सबको पढ़ लिख कर बेहतर नौकरी करने का अधिकार है, लेकिन एक दिन मेड के ना आने से हम परेशान हो जाते हैं। इतना कहने के बाद मैं चुप हो गई। इसके बाद तो जैसे चुप्पी छा गई। किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। मेरे पास भी आगे कहने को कुछ नहीं था। हम सब शायद अपने दोगलेपन ही चुप थे।