शनिवार, 24 मई 2008

काश मिल जाता नदी का किनारा....


जब भी मुझे लगता है कि मैं क्यों दिल्ली में हूं...जबकि मुझे दिल्ली पसंद नहीं, मुझे तो मुंबई पसंद था....तब सोचती हूं कि आखिर मुंबई में ऐसा क्या था जो मैं मिस करती हूं। दरअसल मैं मुंबई की दो चीजें मिस करती हूं। एक...वहां किसी भी वक्त घूमने जाया जा सकता था। रात को ११ बजे भी अकेले इधर-उधर जा सकती थी। लेकिन दिल्ली में रात को अकेले बाहर निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा। निकल भी पड़े तो जाने का कोई जरिया नहीं मिलेगा। ना बस ना अॉटो। दूसरी बात जो मैं सबसे ज्यादा मिस करती हूं वह है समंदर का किनारा। मन उदास हो या ज्यादा खुशी हो....कभी भी जूहू बीच, मरीन ड्राइव या बैंड स्टैंड जाया जा सकता है। लेकिन दिल्ली में ऐसी कोई जगह नहीं है। घूमने जाना हो तो इंडिया गेट.....के अलावा कोई अॉप्शन नहीं है। वैसे तो यहां भी यमुना बहती है। लेकिन इतनी गंदी की पास से गुजर गए तो नाक में रूमाल रखना पड़ता है। सोचती हूं कि काश यमुना बिल्कुल साफ-सुथरी हो जाती। उसके बाद कुछ जगहों पर पानी के किनारे बैठने का इंतजाम भी किया जा सकता है। अगर ऐसा हो जाए तो.....मुंबई को मिस करने की यह वजह तो खत्म हो जाएगी। अक्सर मैं और मेरी दोस्तें जब भी कभी रात में साथ होते हैं और बाहर जाने का मन करता है तो यही बातें करती हैं कि काश मुंबई में ही होते......अब तो सोचती हूं कि काश दिल्ली इन मायनों में मुंबई जैसी बन जाती। समंदर ना सही नदी का किनारा मिल जाता.....

रविवार, 18 मई 2008

मौत पर कमाई

नोएडा में आरुषि की मौत की खबर सभी चैनलों पर चल रही थी। मैं ज्यादा जानकारी की चाहत में लगातार चैनल चेंज कर रही थी। लेकिन इंडिया टीवी पर पहुंच कर रुक गई। दरअसल उसमें जो चल रहा था वह वाकई में निन्दा करने लायक लगा। एंकर बोल रही थी कि आप हमें इस.....नंबर पर फोन कर बताएं कि आपको क्या लगता है...कौन है आरुषि का कातिल? और कुछ (उत्साही) लोग फोन कर हत्यारे पर अपने-अपने तुक्के भिड़ा रहे थे। कोई कह रहा था कोई अपरिचित हत्यारा होगा तो कोई आरुषि के मां-बाप पर ही उंगली खड़ी कर रहा था।
हत्यारा चाहे जो भी हो, पुलिस उसका पता लगाने की कोशिश कर ही रही है। हो सकता है कि जल्द ही गुत्थी सुलझ भी जाए। लेकिन एक बच्ची की दर्दनाक मौत पर हत्यारे का अंदाजा लगाने के नाम पर (ज्यादा से ज्यादा फोन रिसीव कर) चैनल की कमाई करना मुझे बेहद ही अफसोसजनक लगा। उन्होंने यह तक नहीं सोचा कि उस परिवार पर क्या गुजर रही होगी....शर्म आनी चाहिए उन्हें.....

मंगलवार, 13 मई 2008

बड़ा कन्फ्यूजन है...


कन्फ्यूजन इसलिए है क्योंकि एक ही बारे में दो अलग-अलग चैनल अलग-अलग बातें कर रहे हैं। अब भरोसा करें तो किस पर। क्योंकि कोई भी ऐसा चैनल नहीं जिस पर आंख मूंद कर भरोसा किया जाए उस पर भी जब दोनों अलग-अलग बातें कर रहे हों तब तो कन्फ्यूज्ड होना लाजिमी है।
दरअसल कल आजतक और इंडिया टीवी दोनों ही उड़ने वाले शख्स को आधे घंटे तक घसीट रहे थे। दोनों चैनल में एक ही शख्स के बारे में बात हो रही थी। कोई विदेशी शख्स था। जो उड़कर एक इमारत से दूसरी इमारत तक पहुंच जाता है। दोनों ही चैनल बार-बार लगातार उसे दिखा रहे थे। शो खत्म होने के आखिरी पांच मिनट में दोनों चैनल ने उड़ने के राज़ का खुलासा किया। आजतक ने नतीजा निकाला कि वह शख्स कुछ खास कपड़े पहने हुए है, जिसमें ट्यूब बनी हुई हैं और ट्यूब में हीलियम गैस है। जिस कारण वह उड़ पा रहा है। हालांकि उसने यह नहीं बताया कि दोनों हाथ फैलाए हुए वह शख्स दिशा कैसे कंट्रोल कर रहा था। खैर....दूसरी ओर इंडिया टीवी ने खुलासा किया कि दरअसल वह शख्स उड़ ही नहीं रहा है। यह तो वीडियो एडिटिंग का कमाल है। चैनल ने अपने को सही साबित करने के लिए कई तर्क भी दिए। जैसे एक सीन में पास में रखे कूलर की परछाई दिख रही है...दूसरे में नहीं....वगैरह...वगैरह।
अब कोई यह बताए कि किसका खुलासा सही था......या फिर दोनों चैनल लपेट रहे थे.............

शनिवार, 3 मई 2008

यही है जीवन...


जन्म लेते ही मां की गोद है जीवन,

बचपन में खेलकूद है जीवन,

कुछ बड़े होने पर, दोस्तों का प्यार है जीवन,

एजुकेशन के बाद सोचें तो रोजगार है जीवन,

उस जीवन की खोज में भटकते हैं कदम

कभी चकाचौंध इमारतें, कभी टूटी झोपड़ी निहारते हुए

दिन-भर घूम-घूम कर कुछ न लगे हाथ तो

घर में झुझलाहट है जीवन

सुबह से शाम तक की खोज...

कुछ न मिलने पर

देर रात थके हारे आकर...मुंह ढाप लेता है जीवन

बिन सिसकियों के आंसू की बौछार है जीवन,

कुछ मिल जाए तो आराम है जीवन...

ना मिल पाए तो लंबा बुखार है जीवन