शुक्रवार, 14 मार्च 2008
तलाश...
बहुत टकराए हम ऊंची दीवारों से, खूब खोजा रेत में पानी
पर दीवारें दृढ़ थी और रेत थी सूखी
सोचा था कि दीवारें टूटेंगी और मिलेगा हमें पानी
अचानक छा गया अंधेरा....आंखें खोली तो देखा,
दीवारें हो गई थी और भी ऊंची, समुद्र भी बन गया था रेत,
अब तो कोशिश करते हैं दीवार में बनाने की सुराख
और चाहते हैं...रेत को निचोड़कर पानी
(वैसे तो ये लाइनें कई साल पहले लिखी थी लेकिन आज भी यह उतनी ही सही महसूस होती हैं)
बुधवार, 12 मार्च 2008
ठूंठ की छाया
रविवार, 9 मार्च 2008
दिल-दिमाग की जंग
सदस्यता लें
संदेश (Atom)